महाराष्ट्र में पत्रकार की हत्या के आरोपी को रिफाइनरी से मिल रहा था पैसा, जांच में साबित

एक साल पहले पश्चिमी भारत के एक गांव में पत्रकार शशिकांत वरिशे की हत्या कर दी गई थी। फॉरबिडन स्टोरीज़ और इंडियन एक्सप्रेस ने संदिग्ध भूमि सौदों पर किये गए उनके काम की टूटी डोर को थामने की एक कोशिश की है। जिसमे हमें वरिशे की हत्या के आरोपी पंढरीनाथ अंबरकर को एक तेल रिफाइनरी परियोजना से जोड़ने वाले दस्तावेज़ प्राप्त हुए, जिनसे भूमि अटकलों के मामले सामने आएं और कुछ भारतीय राजनेताओं और नौकरशाहों के नाम उससे जुड़े पाए गए।

ज़मीनी दाँव-पेंच: तेल रिफाइनरी परियोजना पर शशिकांत वरिशे के काम को आगे बढ़ाने की पहल

By Phineas Rueckert
Translation: Waqar Khan
Reading time: 10m

ज़मीनी दाँव-पेंच | फरवरी 12, 2024

शेवंती वरिशे और उनका पोता यश, भारत के पश्चिमी महाराष्ट्र में लगभग सबसे घने ट्रॉपिकल फोरेस्ट्स के बीच एक ग्रामीण ज़िले, राजापुर में एक साधारण, दो-कमरे के घर में रहते हैं। पिछले एक साल में उनके उस घर में केवल एक बदलाव आया है, जो की बस घर के अंदर जाने के रास्ते में एक छोटी सी चौकी है, जिस पर बेहद छोटे और बगल से सफ़ेद पड़ रहे बालों में एक एक गंभीर भाव वाले आदमी की तस्वीर रखी हुई है। आदमी के चेहरे पर भाव इतने गंभीर है के देखने पर ऐसा लगता है के वो सीधा आपकी आँखों में देख रहा हो, उस फोटो पर अब एक फूलों की माला भी है। वो तस्वीर किसी और की नहीं बल्कि 48 वर्षीय पत्रकार शशिकांत वरिशे की है, जिनकी हत्या उनके घर से कुछ किलोमीटर दूर पर ही कर दी गयी थी। उनकी माँ शेवंती आज भी रात के खाने के वक़्त अपने बेटे का इंतज़ार करती हैं, वे भावुक होते हुए कहती हैं के “हमने अपना सब कुछ खो दिया”

वारिशे महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र कोंकण में एक स्थानीय मराठी अख़बार महानगरी टाइम्स में रिपोर्टर के रूप में काम करते थे, उनके साथ काम करने वाले लोग उन्हें आज भी उनके धैर्य और निडर व्यक्तित्व के लिए याद करते हैं। उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग की शुरुआत क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के ख़िलाफ हो रहे आन्दोलनों से की, जिनमे 44 बिलियन डॉलर का रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स प्लांट जिसे रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (RRPCL) कहा जाता है, भी था। आरआरपीसीएल को 2017 में तीन भारतीय राज्य तेल कंपनियों के बीच एक संयुक्त साझेदारी के रूप में प्रस्तावित किया गया था। सऊदी अरामको और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) ने भी परियोजना पर साझेदारी करने का इरादा ज़ाहिर करते हुए एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर दस्तख़त किए हैं। अभी तक इस परियोजना को स्थानीय कार्यकर्ताओं के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा है, जिनके मुताबिक़ रिफाइनरी पर्यावरण के लिए बेहद ख़तरनाक है और उसे नुक़सान पहुँचाएगी, वहीं किसानों की जीविका पर गहरा असर भी डालेगी।

मंगेश चव्हाण बताते है की “ इन परियोजनाओं के ख़िलाफ़ स्थानीय लोगों के मुद्दों को उठाना” वरिशे की अहम पहल थी और वो उसके लिए प्रतिबद्ध थे। “जब इन मुद्दों की बात आती थी तो वे अडिग होते थे, फिर सामने कितने भी शक्तिशाली लोग क्यों न हों” वे अपनी बात में जोड़ते हैं।

6 फरवरी, 2023 की सुबह, वारिशे ने एक स्थानीय भूमि दलाल पंढरीनाथ अंबरकर के ख़िलाफ़ एक लेख लिखा था। वारिशे ने लेख में लिखा था के, अंबरकर जो 2019 के संसदीय चुनावों में एक स्वतंत्र, रिफाइनरी समर्थक उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा था, उसने अब सार्वजनिक बैनर लगाए हैं जिनमें वह महाराष्ट्र के दो बड़े नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ देखा जा सकता है। लेख का सीधा उद्देश्य अंबरकर के आपराधिक रिकॉर्ड पर रौशनी डालना और जनता को सावधान करना था।


6 फ़रवरी, 2023 को महानगरी टाइम्स में छपा शशिकांत वरिशे का आख़िरी लेख

उसी दिन जब वरिशे अपनी मोटरसाइकिल में पेट्रोल डलाने के लिए एक पेट्रोल पंप पर रुके, तभी उन्हें एक SUV ने टक्कर मार दी, जिसे कथित तौर पर अंबरकर चला रहा था, वरिशे को वह लगभग 80 मीटर तक पहियों के नीचे सड़क पर घसीटता हुआ ले गया। पुलिस ने कहा कि स्थानीय लोग मदद के लिए दौड़े तो आरोपी तुरंत घटनास्थल से भाग गया। अगले दिन सुबह जल्द ही, वरिशे को मृत घोषित कर दिए गया।

मई 2023 में दायर की गयी चार्जशीट में, पुलिस (SIT) ने यह पुष्टि करते हुए कहा की वरिशे द्वारा उसके ख़िलाफ़ लिखे गए लेख से अंबरकर नाराज़ हो गया था, जिसकी वजह से उसने उन्हें जीप से कुचल दिया। जांचकर्ताओं को आरोपी के फ़ोन से एक कॉल रिकॉर्डिंग मिली, जिसमे वो मराठी में साफ़ कहता पाया जा रहा है की उसके ख़िलाफ़ लेख लिखने के लिए वह वरिशे को जान से मार देगा “मुझे किसी को ख़त्म करना है” “हम इसे आज करेंगे।” अंबरकर के घर की तलाशी लेते हुए, पुलिस अधिकारियों को एक पेन ड्राइव भी मिली जिसमें महानगरी टाइम्स के लेख पाए गए, जिससे पता चलता है कि उनकी हत्या पूर्व नियोजित थी। (एक ज़मानत याचिका में, अंबरकर ने दवा किया के टक्कर महज़ एक एक्सीडेंट थी, वो अपनी आटोमेटिक कार के ब्रेक और एक्सीलेटर में उलझ गया था। अंबरकर अभी महाराष्ट्र जेल में बंद है, जहाँ उसे ज़मानत के लिए इंकार भी हुआ है। अदालत की कोई भी तारीख़ अभी तक निर्धारित नहीं की गयी है।)

वरिशे की मौत के एक साल बाद, फॉरबिडन स्टोरीज़ – जिसका मिशन हत्या किये गए, जेल में बंद और उत्पीड़ित पत्रकारों के छूट गए कामों को फिर से आगे बढ़ाना है – ने वरिशे द्वारा शुरू किये काम, आरोपी अंबरकर की तफ़तीश और ज़मीन की कालाबाज़ारी, जिसपर वरिशे लगातार रिपोर्ट कर रहे थे, को जारी रखने के लिए द इंडियन एक्सप्रेस के साथ साझेदारी की। हमें RRPCL द्वारा अंबरकर अधिकृत कंपनी, साईं कृपा ट्रेवल्स को भेजी गई राशि के रिकार्ड्स प्राप्त हुए, NEFT द्वारा 444,000 भारतीय रुपए के लेन – देन दिसंबर 2022 तक थे। जो के अंबरकर द्वारा कथित तौर पर वरिशे की हत्या से लगभग 2 महीने पहले के हैं, और रिफाइनरी के उसके के साथ कोई भी सम्बन्ध न होने के दावों को पूरी तरह ख़ारिज करते हैं।


7 फरवरी, 2023 को हत्या किए गए पत्रकार शशिकांत वरिशे की माँ - शेवंती, और बेटा - यश। Photo: Vallabh Ozarkar (Indian Express)

इस संयुक्त जांच ने रिफाइनरी के लिए निर्धारित की गईं महत्वपूर्ण भूमि अटकलों से भी पर्दा हटाया है। जिन ज़मीनों को ज़्यादातर उनके मार्केट रेट से भी कम में ख़रीदा गया है, वे रिफाइनरी बनाने के लिए ज़रूरी ज़मीन के आधिकारिक तौर पर सूचित या महाराष्ट्र सरकार द्वारा अनुरोध करते ही आसमान छूने लगेँगी। फॉरबिडन स्टोरीज़ और इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त किए गए दस्तवेज़ों के मुताबिक़, 2021 और 2023 के बीच, अंबरकर और उसका सम्बन्धी अक्षय अंबरकर, प्रोजेक्ट एरिया के भीतर आने वाले गॉवों में लगभग 34 ज़मीनों के लेन-देन में शामिल थे। जिनकी कुल कीमत 2 करोड़ 83 लाख भारतीय रूपये थी। अंबरकर के खिलाफ़ रिफाइनरी का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओ पर हमला करने के लगभग 4 आपराधिक मामले भी दर्ज हैं, वहीं उसका रिफाइनरी का ख़ुल कर समर्थन करना किसे से नहीं छिपा था, और तो और वो RRPCL के अधिकारीयों को व्हीकल सर्विस भी प्रदान करता था, साथ ही RRPCL के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर अमित नगवेकर की क़रीबी संपर्क में था, जो अंबरकर और रिफाइनरी के आला- अधिकारीयों के बीच के सम्बन्धो को साफ़ दर्शाता है।

इन सभी परिणामों को ग्लोबल विटनेस रिपोर्ट ने समर्थित किया है, जिसका कोंकण क्षेत्र की राजधानी रत्नागिरी में रिफाइनरी का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं के दमन पर शोध हमारी रिपोर्टिंग के साथ प्रकाशित किया जा रहा है।

(आरआरपीसीएल और अंबरकर ने टिप्पणी के लिए कई अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। न ही सऊदी अरामको ने। फॉरबिडन स्टोरीज़ के साथ साझा किए गए एक बयान में, एडीएनओसी ने कहा कि उसने "संभावित रणनीतिक साझेदारी का पता लगाने के लिए" एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर दस्तख़त किए थे, लेकिन वे " अभी तक प्रस्तावित परियोजना में सक्रिय रूप से शामिल नहीं हुए है।")

 

संसाधन और अभिशाप

महाराष्ट्र की पर्यावरण सक्रियता की छोटी सी दुनिया में, वारिशे विरोध प्रदर्शनों में एक जाना-पहचाना चेहरा थे, उसी दुनिया का एक और सक्रिय चेहरा है, मंगेश चव्हाण। घनी दाढ़ी-बाल वाले 54 वर्षीय चव्हाण पिछले 30 साल से कोंकण क्षेत्र में ही रह रहे हैं, जिनका अक्सर वरिशे से सामना होता रहता था। चव्हाण जो के एक हॉर्टीकल्चरलिस्ट हैं और महाराष्ट्र कृषि विभाग के कर्मचारी भी रह चुके हैं, रत्नागिरी से चार किलोमीटर दूर घने जंगलों और लाल मिट्टी के पठारों से लैस जुवे आइलैंड पर रहते हैं। चव्हाण बताते हैं के बरसात के मौसम में जब पानी पहाड़ों के नीचे जमा हो जाता है तब वहाँ गेक्को, पर्पल फ्रेशवाटर क्रैब्स और अन्य कई दुर्लभ वन्यजीव देखे जाते हैं। “लेकिन यह प्राकृतिक संपदा एक अभिशाप के साथ आती है”, चव्हाण अपनी बात से इशारा करते हुए बोलते हैं।

चव्हाण के मुताबिक़ आने वाली हर सरकार की कोशिश इस जगह को एक उद्योग में बदलने की ही रही है, वे कहते हैं की “इन जगहों को अपने कब्ज़े में करने के लिए उन सभी ने एक-दूसरे के साथ जंग छेड़ रखी है” मगर इसी में जोड़ते हुए बताते हैं की “लोग संरक्षण के लिए इन परियोजनाओं के विरोध में खड़े हो गए हैं, क्योंकि ये न केवल उनकी आजीविका की सुरक्षा है, बल्कि उस पर्यावरण की भी सुरक्षा भी हैं, जिस पर वे अपने अस्तित्व के लिए सक्रिय रूप से निर्भर हैं।”

भारत में भूमि संघर्ष के मामलों पर रिसर्च करने वाले इंडिपेंडेंट नेटवर्क ‘लैंड कनफ्लिक्ट वॉच’ के संस्थापक कुमार संभव के अनुसार – भारत में विश्व की 17 प्रतिशत आबादी, विश्व की केवल 2.5 प्रतिशत ज़मीन पर रहती है। नतीजतन, ज़मीन की मांग इतनी ज़्यादा है और इसीलिए कुछ लोग इसे पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। कुमार कहते हैं “जो क़ानून और नीतियां कमज़ोर तबके की सुरक्षा के लिए बनाये गए हैं, उन्हें शक्तिशाली लोगों की मदद करने के लिए तोड़ा-मरोड़ा जाता है।( लैंड कनफ्लिक्ट वॉच ने महाराष्ट्र में इंडस्ट्रियल, इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर और माइनिंग सेक्टर से जुड़े 44 ज़मीन के मामलों का दस्तावेज़ीकरण किया है, जिनमें से कई में स्थानीय आबादी की पूर्व सूचित सहमति (PIC) का उल्लंघन शामिल है।)

2015 में चुनाव जीतकर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के 60 मिलियन टन प्रतिवर्ष की रिफाइनरी का प्रस्ताव रखते ही, पूरे महाराष्ट्र में भूमि संघर्ष के मामलों के तरह यहाँ भी स्थानीय कार्यकर्ताओं ने लड़ाई की तैयारी शुरु कर दी। रिफाइनरी के समर्थकों ने "बड़े पैमाने पर रोज़गार…और क्षेत्र के आर्थिक विकास" का वादा किया। 2017 में, पब्लिक सेक्टर की तीन भारतीय तेल कंपनियों के बीच RRPCL का गठन किया गया था। अगले साल, सऊदी अरामको और ADNOC ने संयुक्त रूप से ‘मेगा रिफाइनरी और
पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स’ को बनाने, चलाने और अपने स्वामित्व में लेने के लिए एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर दस्तख़त किए। यह परियोजना नानर गांव के लिए बनाई गई थी, जहाँ महाराष्ट्र औधोगिक विकास निगम ने एक प्री-फिज़िबिलिटी स्टडी की थी। चव्हाण के मुताबिक़ तभी से ग्रामीणों ने परियोजना के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था। जिसके बाद सरकार ने यह प्रस्ताव वापस ले लिया था।

लेकिन इसके दो साल बाद ही, महाराष्ट्र सरकार ने वहां से लगभग 30 किलोमीटर दूर बार्सू में एक प्रोजेक्ट साइट का ऐलान कर दिया, जहां ज़्यादातर गावों ने इस परियोजना को ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया के इसके लिए किसे से भी सलाह नहीं ली गयी है। प्रोजेक्ट से संभावित रूप से प्रभावित होने वाले कस्बों में से एक, धोपेश्वर के उप-सरपंच नरेश सूद ने फॉरबिडन स्टोरीज़ के पार्टनर इंडियन एक्सप्रेस से बात-चीत में बोला की "हम ऐसी परियोजना नहीं चाहते हैं जो गांव को प्रदूषित करे।" "सरकार को परियोजना रद्द करनी चाहिए और ऐसी परियोजनाएं लानी चाहिए जो हमारे गांवों को प्रदूषित न करें।"

वहीं पड़ोसी गांव, सोलगांव के सरपंच दिलीप थोतम ने बोला की गांव के लोग आर्थिक अवसर चाहते हैं, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग नहीं। इनकी जगह सरकारी परियोजनाएं "आम, काजू या अन्य फलों की खेती पर आधारित होनी चाहिए,"


महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र

लेकिन वारिशे की हत्या के मामले में आरोपी अंबरकर जैसे स्थानीय भूमि दलालों के लिए, बार्सू में प्रोजेक्ट का लगना अब एक आर्थिक अवसर की तरह है। ऐसे दलाल बड़ी आसानी से मार्केट रेट से कम पर ज़मीन ख़रीद सकते थे और भूमि अधिसूचना मंजूर होते ही इसे सरकार को मुँह मांगे दामों पर बेच सकते थे।

फॉरबिडन स्टोरीज़ और इंडियन एक्सप्रेस ने प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र के गांवों में पांच साल के ज़मीनी लेन-देन की तहक़ीक़ की। स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिले और ग्लोबल विटनेस को दिए गए दस्तावेजों से बनाई गई एक एनालिसिस के मुताबिक़, हमने पाया की 2018 और 2022 के बीच ज़मीन के लेनदेन में 200 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। वहीँ ग्लोबल विटनेस रिपोर्ट का ये भी कहना है की,

कार्यकर्ताओं के मुताबिक़ 2019 और 2022 के बीच, महाराष्ट्र से बाहर के 150 से अधिक लोगों ने परियोजना से संभावित रूप से प्रभावित हो कर गांवों के भीतर लगभग 32 करोड़ रूपए से अधिक के सौदों में ज़मीन खरीदी हैं। प्रस्तावित रिफाइनरी क्षेत्र के गांवों में से एक देवाचे गोठाणे के पूर्व प्रधान कमलाकर मारुति गुरव ने ग्लोबल विटनेस को बताया की “गरीब लोगों को उनकी ज़मीन हड़पने और रिफाइनरी परियोजना शुरू करने के लिए प्रताड़ित किया है।" "किसानों को अपनी ज़मीन सस्ते में बेचने के लिए बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा था, उन्हें बताया गया था कि इसका इस्तेमाल केवल खेती के लिए किया जाएगा।"

 

‘कोंकण का चौकीदार’

बार्सू साइट का ऐलान होते ही, दो ख़ेमे सामने उभर कर आए। पहला ख़ेमा उन कार्यकर्ताओं का था जिन्होंने इस परियोजना का कड़ा विरोध किया, वहीं दूसरे ख़ेमें में अंबरकर सहित अन्य लोग थे जिन्होंने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका जमकर समर्थन किया। अंबरकर ने स्थानीय लोगों के सामने ख़ुद को RRPCL का दाहिना हाथ दिखाने में ज़रा भी वक़्त नहीं लिया और साथ ही स्थानीय नेताओं के साथ ताल-मेल बढ़ाना शुरू कर दिया। तस्वीरों में अंबरकर को स्थानीय नेताओं और राज्य के उद्योग मंत्री उदय सामंत के साथ देखा जा सकता है, जिन्होंने पहले प्रोजेक्ट का समर्थन किया था।

परियोजना के लिए पहली जगह नानर चुनी गयी, उसके बाद ही अंबरकर ने 2019 का संसदीय चुनाव ख़ुद को एक स्वतंत्र, रिफाइनरी समर्थक उम्मीदवार बताते हुए लड़ा। उसका चुनावी नारा “मैं कोंकण का चौकीदार हूँ” सब ज़ाहिर करता था। चार्जशीट के मुताबिक़ चुनाव हारने के बावजूद उसने रिफाइनरी के PRO अमित नागवेकर से बात-चीत बना ली थी। नागवेकर ने भी वरिशे हत्याकांड पर पूछताछ के दौरान पुलिस के सामने स्वीकार किया कि 2018 से ही उसकी अंबरकर के साथ बात-चीत थी। बयान के अनुसार, अंबरकर, जो एक ट्रैवल कंपनी का मालिक था, रिफाइनरी अधिकारियों को "समय-समय पर उनकी मांग के अनुसार वाहन सेवाएं प्रदान करता था।" “इसके अलावा, पंढरीनाथ अंबरकर का आरआरपीसीएल कंपनी या अधिकारी से कोई संबंध नहीं है,” ये नागवेकर ने पुलिस को बताया। (फॉरबिडन स्टोरीज़ और द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा भेजे गए सवालों के नागवेकर ने डिटेल में जवाब नहीं दिए।)

अपने वकील के माध्यम से, सामंत ने ये कहते हुए कि अंबरकर ने “कई प्रमुख राजनेताओं के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाई हैं ” अंबरकर के साथ “किसी भी व्यक्तिगत या व्यावसायिक” संबंध होने से इनकार किया। उन्होंने ये भी कहा कि " यह समझना ज़रूरी है की लोकप्रिय हस्तियां अमूमन ऐसी परिस्थितियों में होती हैं, जहाँ अलग-अलग बैकग्राउंड के लोग होते हैं” “मेरा इस बात पर कण्ट्रोल नहीं है के वहां कौन मौजूद है और कब तस्वीर ली जा रही है” “वह कभी भी मेरी पार्टी का कार्यकर्ता नहीं था” उन्होंने जोड़ते हुए कहा।


पंढरीनाथ अंबरकर (बीच में दाएं) और उदय सामंत (बीच में बाएं)।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि अंबरकर ने ज़मीनें हासिल करने और विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए बदमाशी और हेरफेर की रणनीति का इस्तेमाल किया और अक्सर हिंसा और धमकियों का ही सहारा लिया। उदाहरण के रूप में 2020 में अंबरकर पर स्थानीय कार्यकर्ता मनोज मयेकर को अपनी SUV से कुचलने का भी आरोप है। सत्ता में बैठी भ.जा.पा की नीतियों का विरोध करने वाली शिवसेना पार्टी के सदस्य विनायक राउत एक ट्रांसलेटर की मदद से फोर्बिडन स्टोरीज को बताते हैं की “अंबरकर एक विख्यात गुंडा और भू-माफिया है”

अंबरकर पर ऐसे ही कई और आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें, धमकी, ग़ैरक़ानूनी सभा जुटाना और इरादतन नुक्सान पहुंचना शामिल है। हत्या के मामले में गिरफ्तार अंबरकर द्वारा डाली गई ज़मानत याचिका के ख़िलाफ़ इंवेस्टीगेटिंग ऑफिसर ने तर्क देते हुए कहा के अंबरकर समाज के लिए एक ख़तरा हैं और अगर उन्हें ज़मानत मिली तो वो केस को प्रभावित करने की कोशिश भी कर सकते हैं। “आवेदक एक आदतन अपराधी है। आस-पास के क्षेत्र में आवेदक का आतंक है। यदि आवेदक को ज़मानत पर रिहा किया जाता है तो

वह मृतक के रिश्तेदारों और गवाहों पर दबाव डाल सकता है।'' (अंबरकर की पहली ज़मानत अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया गया था, दूसरी अभी बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित है)

सितंबर 2022 में, परियोजना के पक्ष और विपक्ष के कार्यकर्ताओं के बीच एक छोटे से गांव गोवल में झड़प हुई, जिसके बाद ही एक कार्यकर्ता ने अंबरकर के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

वारिशे ने इस घटना को महानगरी टाइम्स में कवर किया, उन्होंने अंबरकर और अन्य रिफाइनरी समर्थकों के बारे में लिखा, "वे सिर्फ ज़मीन हड़पने वाले लोग हैं जो राजापुर और ग्रामीण इलाकों के ग़रीब लोगों को डरा रहे हैं।" वारिशे ने ख़ुद के लिए एक ख़तरनाक़ रास्ता चुन लिया था; छह महीने से भी कम वक़्त में, वह भी अंबरकर के निशाने पर आ गए।

 

ज़मीनों पर दांव

2023 की शुरुआत में, जैसे ही परियोजना पर माहौल गरमाना शुरू हुआ, वरिशे ने क्षेत्र में ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त पर गौर करना शुरू कर दिया और उन स्थानीय रियल-एस्टेट दलालों की पहचान शुरू की जिन्होंने कम कीमतों पर ज़मीन ख़रीदी और ऐसे बाहरी लोगों को बेचीं जिन्हे सरकारी अधिग्रहण से कोई मसला नहीं था।

इन भूमि दलालों की सूची में अंबरकर और उसके साथ ही काम करने वाले एक संबंधी अक्षय अंबरकर का नाम भी शामिल था। फॉरबिडन स्टोरीज़ और द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त किए गए भूमि पंजीकरण दस्तावेज़ साबित करते हैं कि अंबरकर ने कम से कम 15 भूमि लें-देन जिनकी कुल कीमत लगभग 86 लाख़ भारतीय रूपये और कुल वर्ग 6.33 हेक्टेयर था, में एजेंट के रूप में काम किया या उन्हें ख़रीदा-बेचा। वहीं अक्षय 8 हेक्टेयर से अधिक के कम से कम 19 सौदों में शामिल था, जिनकी कीमत लगभग 1 करोड़ 99 लाख रूपए थी।

इन ज़मीनों को ख़रीदने वालों में राजनेता और नौकरशाह भी शामिल थे। 2022 में, ग्रेटर मुंबई नगर निगम के उप नगर आयुक्त किरण वसंत आचरेकर ने 1 करोड़ 72 लाख में पांच प्लाट ख़रीदे हैं। इन सभी लेन-देन में अक्षय पावर ऑफ अटॉर्नी था। भाजपा के पूर्व विधायक आशीष रंजीत देशमुख ने 56 लाख रुपये में दो प्लाट खरीदे। महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम के अनिल कुमार गायकवाड़ ने बार्सू में 50 लाख़ रुपये के चार प्लाट खरीदे। (लगातार अनुरोधों के बाद भी अचरेकर और गायकवाड़ ने कोई भी टिप्पणी नहीं की, वहीं देशमुख ने कहा के उन्होंने ये ज़मीन खेती के लिए ख़रीदी है, और उन्हें नहीं पता के इसे रफाइनरी के लिए इस्तेमाल किया जायेगा या नहीं। अक्षय अंबरकर ने भी टिप्पणी के लिए किए गए अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया।)


रेटर मुंबई नगर निगम। किरण वसंत आचरेकर, उप नगर आयुक्त ने नियोजित रिफाइनरी क्षेत्र में ज़मीन खरीदी हैं। Photo: Daniel Mennerich/Wikimedia Commons

कार्यकर्ताओं और रिफाइनरी के विरोधियों का दावा है की बहुत से किसान जिन्होंने अपनी ज़मीनें बेचीं, इस बात से अनजान थे की उनकी ज़मीनों पर रिफाइनरी बनाई जाएगी। उन्हें अब ये चिंता है की भूमिहीन के साथ-साथ वे बेरोज़गार भी हो जायेंगे।

धोपेश्वर गांव की वनिता नारायण गुरव जिन्होंने अपना खेत बेचने से इंकार कर दिया था, सवाल करती हैं कि “हमारी रोज़ी-रोटी पूरी तरह से उस ज़मीन पर निर्भर है जिस पर हम खेती करते हैं, ज़मीन देने के बाद हम कहां जाएंगे?” “उन्होंने ज़बरदस्ती हमारी ज़मीनों की मिट्टी का टेस्ट किया, अनुमति भी नहीं ली और जब हमने इसका विरोध किया तब उन्होंने हमें गिरफ्तार कर लिया।”

कार्यकर्ता बताते हैं की भूमि दलाल सबसे पहले कमज़ोर कड़ी ढूढ़ने की कोशिश करते हैं, मिलते ही वे सबसे पहले उन्ही व्यक्तियों को निशाना बनाते हैं। नेगेटिव कवरेज से बचने के लिए उन्होंने पत्रकारों को भी निशाने पर लिया है, वहीं प्रेस रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बार्सू में अंबरकर ने दो पत्रकारों को अपना मुँह बंद रखने के बदले ज़मीनें बेचीं थीं। उनके पुराने सहयोगी अमोल म्हात्रे बताते हैं कि अंबरकर

ने वरिशे को भी ज़मीन का लालच दिया था, मगर वहाँ उसे मुँह की खानी पड़ी थी। 1,000 पन्नों से भी ज़्यादा की चार्जशीट के मुताबिक़ अंबरकर ने कथित तौर पर वरिशे को उनके बारे में नकारात्मक लिखने के लिए धमकी दी थी।


महाराष्ट्र का एक मंदिर।

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स में भारत के प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार के मुताबिक़, जो रिपोर्टर भूमि संबंधी मुद्दे उठाते हैं, उन्हें अक्सर धमकियों का सामना करना पड़ता है, कुणाल ने पिछले पांच साल में हर छह महीने में लगभग एक ऐसे मामले का विवरण दिया है। भाजपा का गढ़ भी कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की 2020 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

मजूमदार कहते हैं कि “कई ऐसे गैर-राज्य अभिकर्ता (NSA) हैं , जिसमें बड़े व्यापारसंघ, स्थानीय माफिया और अन्य भी शामिल हैं, जिन्होंने विभिन्न राज्य अभिकर्ताओं के साथ हाथ मिलाया हुआ है, और जो अब पत्रकारों को निशाना बना रहे हैं,'' "क्योंकि, पत्रकारों को निशाना बनाना केवल सत्ता को नियंत्रित करने का एक बड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह संसाधनों को अपने कब्ज़े में करने का भी एक मुद्दा है।" वे आगे जोड़ते हैं।

 

स्वर्ग बचाने की लड़ाई

म्हात्रे ने बताया, 2023 की शुरुआत में जब रिफाइनरी को लेकर चल रही लड़ाई ने तेज़ी पकड़ी, तब उन्होंने मौके की नज़ाकत को भांपते और वरिशे को सचेत करते हुए बोला की “अपना ख़्याल रखना” जिस पर वरिशे ने अपने निडर व्यक्तिव के अनुकूल ही जवाब दिया “मैं इस रिफाइनरी के लिए कोई समझौता नहीं करूँगा।” वहीं अपनी माँ की चिंताओं को विराम देने के लिए वे उनसे बोलते थे की “वे कुछ भी ग़लत नहीं कर रहे है” “वे लोगों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, और इसके लिए उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा” शेवंती याद करती हुई बताती हैं।

फिर, फरवरी में वरिशे की असामयिक मौत ने एक मशाल जला दी, सैकड़ों प्रदर्शनकारी जिनमे ज़्यादातर महिलाएं थी, सड़कों पर उतर आयीं। उन्होंने प्रोजेक्ट साइट पर हो रहे मिट्टी के परिक्षण को अवैध ठहराते हुए, कड़ा विरोध किया। प्रदर्शनकारी रिफाइनरी वाहनों को मिट्टी परीक्षण स्थल तक जाने से रोकने के लिए सड़कों पर लेट गए, जिसे सरकार द्वारा परियोजना को मंज़ूरी देने से पहले पूरा किया जाना ज़रूरी था। एक महिला प्रदर्शनकारी मानसी अमोल बोले ने ग्लोबल विटनेस को बताया की, "उन्होंने हमें डंडों से पीटा, उन्होंने महिलाओं को पकड़ कर ज़मीन पर घसीटा, और हम पर आँसूगैस के गोले भी फेंकें।” 300 से अधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया। ग्लोबल विटनेस ने इसे "ब्रॉडर रिप्रेसिव कॉन्टेक्स्ट" का हिस्सा बताया, जिसमें भारत में क्लाइमेट कार्यकर्ताओं का अपराधीकरण और 2012 के बाद से दर्जनों भूमि रक्षकों की हत्याएं भी शामिल हैं।

मुंबई में सेंटर फॉर फाइनेंशियल एकाउंटेबिलिटी (सीएफए) में तेल और गैस पर प्रोग्राम और टीम लीडर स्वाति शेषाद्री के मुताबिक़, प्रोजेक्ट को बार्सू में भेजे जाने के बाद से कोई भी प्री-फिज़िबिलिटी टेस्ट नहीं किया गया है। शेषाद्रि कहती हैं, "भारत में हम अक्सर एक मुहावरे का इस्तेमाल करते हैं, जंगल राज (जंगल का शासन), लेकिन अब जो हो रहा है, उससे तो ये बेहतर लगता है" “कोई जवाबदेही नहीं है” वे जोड़ती हैं।

आरआरपीसीएल की भूमि अधिग्रहण योजना के स्टेटस पर सवालों का जवाब देते हुए, महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) ने कहा कि आरआरपीसीएल ने अगस्त 2022 और मई 2023 के बीच एक “टेक्नो-फिज़िबिलिटी सर्वे” लिया था और साथ ही भूमि अधिग्रहण के लिए 46 भूस्वामियों से लिखित सहमति भी प्राप्त की थी। वहीं कारपोरेशन के एक प्रवक्ता ने बोला कि “हालांकि, एमआईडीसी को RRPCL से अभी तक रिपोर्ट नहीं मिली है, और न ही उन्होंने भूमि अधिग्रहण के लिए कोई औपचारिक प्रस्ताव दिया है।”

शेषाद्रि ने चिंता जताई कि अगर प्रोजेक्ट आगे बढ़ा, तो कोंकण के कोस्टल इकोसिस्टम पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा, "आप कल्पना करिए कि गांव के गांव ज़हरीले अपशिष्टों से दूषित होंगे।" "जहां पोर्ट बनेंगे वहीं समुद्र में तेल की परतें तैरती दिखेंगी।” वहीं जुवे के कार्यकर्ता मंगेश चव्हाण ने अपने सीने में दबी भावना को दोहराया: "हम स्वर्ग में रहते हैं, और स्वर्ग को हर कीमत पर बचाना होगा"

चव्हाण का मानना है की, वरिशे की सच्ची और निडर रिपोर्टिंग के बिना अगली लड़ाई लड़ना और भी मुश्किल होगा। उन्होंने कहा, "मुझे लगता ​​है कि रिफाइनरी और उसके समर्थक इन भू-माफियाओं में से एक के माध्यम से उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहे थे।" ''वह हमारी एकमात्र आवाज़ थे।” ये कहते हुए चव्हाण अपनी बात को विराम देते हैं।

अतिरिक्त रिपोर्टिंग – वल्लभ ओजरकर (इंडियन एक्सप्रेस)